जब इमाम हुसैन निकले मैदान-ए-जंग मे, कर्बला कांप उठा!

अपने नाना हुज़ूर का अमामा सर पर बांध कर, अम्मा फातिमा की चादर कमर पर लपेट कर, अब्बा अली की तलवार लेकर जब इमाम हुसैन आये जंग करने तो किसी ने लिखा के, “अंधेरो मे हक और हिदायत का आफताब तुलु हुआ, जिसकी रोशनी से कूफे का रेगिस्तान जगमगा उठा, वहशत और बरबरीयत की तारीकों से कर्बला के जर्रे चमक उठे और बातिल पर इस्लाम की रूह जमूरियत की बहार का मौसम छा गया। “

किसी ने लिखा ” नहीं-नहीं, अली का शैर, मुहम्मद ए मुस्तफा के खैमे से निकल कर मैदान मे आ गया जिसके आने से यजीदी भेड़िये डर कर भागने लगे, ” किसी ने लिखा, ” नहीं-नहीं ! जमाल ए मुस्तफा चमक उठाया, जिसकी तजल्ली से कर्बला के जर्रे दमक उठे और जलाले हैदरी जोश मे आ गया, जिसके रौब से लश्कर ए यजीद मे हंगामा बरपा हो गया और उम्र बिन सअद घबरा गया। “

इमाम हुसैन ने मैदान मे आकर कूफियो को मुखातिब करके फरमाया के ए कूफे के दगाबाज इंसानों ! मै अपनी खुशी से नही आया बल्कि तुम्हारे बुलाने पर आया हूँ, तुम्हारे खतो पर आया हूँ तुम ने मेरे साथ जो वादे किये थे वो कहा गए, तुम ने मेरी हिमायत मे मर मिटने की जो कसमें खाई थी वो किधर गई,

तुमने कहा था के अहले बैथ के गुलाम है और इतरत पैगंबर के खादिम है, मगर अब जब के मै आ गया हूँ तो तुमने वो तमाम वादे भुला दिए है, वो तमाम किसमे तोदड़ी है ये धोका है और ये दगा बाजी है, तुमने दुनिया के लालच मे मेरे बाल बच्चों को भूका प्यासा शहीद कर दिया है, तुमने अहले बैथ पर जुल्म किया है और अब मेरे खून के प्यासे हो,

तुम सब ने दुनिए के आर्जी साजो सामान के बदले अपनी आखिरत खराब करली है और मै तुमसे और तुम्हारी तलवारों से बिल्कुल भी नहीं डरता! अलबत्ता मेरी वजह से तुम पर जो कहर ए इलाही नाजिल होने वाला है मै उससे तुमको डरता हूँ, आओ अब भी समझ जाओ और दीन ए इस्लाम की कश्ती मे सवार होकर अपने आप को कुफ़र और बातिल के तूफ़ानों से बचालों ।

मुझे देखो और गौर से देखो तुम्हारे रसूल का नवासा हूँ, नहीं-नहीं नवासा ही नहीं तुम्हारे रसूल की पीठ का सवार हूँ और ये देखो मेरे सर पर उसी का अमामा है, जिसका कलमा तुम पढ़ते हो और मेरी कमर मे उसी फातिमा की चादर है जिसकी फिरिश्तों की भी शर्म थी, इतने मे उम्र बिन सअद बोल उठा,

हुसैन! ये वाजो नसीहत का वक्त नहीं, मरने के लिए तैयार हो जा, और अगर तु प्यासा मरना नहीं चाहता तो अब भी यजीद की बैठ का इकरार करले, फिर हम नहरे फुरात तेरे हवाले कर देंगे, उम्र बिन सअद की इस गुस्ताखी से शैर ए खुदा का शैर इमाम हुसैन गुस्से मे आ गए और फरमाया, उम्र बिन सअद अगर मेने यजीद की बैथ करनी होती तो नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम का रोजा ए अकदस छोड़ कर मैदान मे नहीं आता,

और मै जानता हूँ के यजीद फासिक और फाजिर मुसलमान हुक्मरान है, उसकी हुकूमत गैर इस्लामी है और उसका निजाम ए सल्तनत गैर शरई है तो फिर उसकी बैथ करके मुसलमानों के लिए तबाही का रास्ता नहीं खोल सकता हूँ, उम्र बिन सअद ने जवाब दिया के हुसैन! अगर यजीद की बैथ मंजूर है तो मेरे करीब आ जाओ और इनकार है तो फिर हमारी तरफ से दावते जंग है । इमाम हुसैन ने जवाब दिया, इनकार है !

इतना कहते ही अनस बिन सनान का एक तीर सर सराता हुआ इमाम हुसैन के सरके ऊपर से गुजर गया, फिर फौरन ही हाशमी शहजादे ने भी शमशीर ए हैदरी को हवा मे लहरा दिया और जाफरी नैजे को जुंबिश दी, अनस बिन सनान बड़े तकबबुर के साथ तलवार चमकाता हुआ मुकाबले को आया, मगर अभी वो सँभलने भी न पाया था के शैर ए अली ने उसके 2 टुकड़े कर दिए, फिर उसका भाई गुस्से मे काँपता हुआ आया और बड़े ही घमंड से बोला,

के मुल्क ए शाम और ईराक का मै शहसवार हूँ, इमाम हुसैन ने बड़े ही होश से फरमाया के मै भी इब्ने अली का शैर हूँ, उसने तलवार मारी, आपने ढाल पर रोक ली और फिर आप ने नेजा मार के सीने के पार हो गया और उसकी लाश भी खून मे तड़पने लगी और फिर एक बाद एक-एक करके 8 यजीदी मैदान मे आये लेकिन वो भी वासिल ए जहन्नम हो गए । उम्र बिन सअद का ख्याल था के हुसैन तीन दिन का भूका प्यासा है मगर उसे ये मालूम न था के उस शैर के पंजे मे शैर ए खुदा मौला अली की ताकत थी और उसकी रगों मे बीबी फातिमा का खून था ।

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उम्र बिन सअद ने जब इमाम हुसैन का ये अंदाज देखा तो अपनी आदत के मुताबिक पुकार उठा के ओ साथियों ! अगर एक-एक होकर हुसैन इब्ने अली के सामने जाओगे तो लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी और फैसला हुसैन के हक मे ही होता रहेगा उठो और हिम्मत करो सब चारों तरफ से एक-साथ हमला करो, फिर हर तरफ से तीरों की बारिश होने लगी, तलवारों के वार होने लगे और नेजो की बोछारे होने लगी और जिसके हाथ मे कुछ न था तो वो कर्बला का गरम रेत ही इमाम हुसैन की आँखों की तरफ फेकने लगे,

मगर कुर्बान जाओ इमाम हुसैन की शुजाअत पर सदके जाओ तेरी बहादूरी के दुश्मनों को रोनदते चले गए, जिस जानिब भी चले यजीदिओ के चिराग भुजते चले गए और इस वक्त इमाम हुसैन की शमशीर चल रही थी के मानो कहर ए इलाही जिस सिमत उठी तबाही ही तबाही, इमाम हुसैन, लश्कर ए यजीद पर फिर शैर की झपटे और फिर शुजाअत और बहादूरी के वो जोहर दिखाए के फिरिश्ते भी हैरान रह गए, कभी मैसरा की तरफ बड़े तो लाशों के ढेर लगा दिए,

जो मेमना की तरफ पलटे तो यजीदी खिजा के पत्तों की तरह गिरने लगे और फिर क़ल्ब ए लश्कर मे घुस गए तो लाशे भिछा दी अब लश्कर ए यजीद मे एक हंगामा बरपा हो गया, जहा थोड़ी देर पहले हसी बुलंद थी वहा अब उदासी का माहौल पैदा हो गया और उम्र बिन सअद घबरा कर बोल उठा के बहादूरों! तुम्हारी बहादुरि कहा गायब हो गई, ये हुसैन इब्ने अली है, नहीं-नही ! ये अली का शैर है, इसके बाजुओ मे अली की कूवत है, इसकी रगों मे अली का खून है,

और इसके हाथों मे शमशीर ए हैदरी है और अगर इसको थोड़ी सी भी मुहलत दे दी गई तो ये जंग का नक्शा ही बदल देगा और दुनिया से हमारा नाम और निसान ही मिटा देगा, जाओ और फौज का एक दस्ता लेकर अहले बैथ के खैमो मे आग लगा दो ताकि औरते बाहर निकल आये और मै हुसैन के खून से अपने हाथ रंग लू, इमाम हुसैन ने उसको डांट कर कहा खबर दार अभी हुसैन इब्ने अली जिंदा है और तेरा एक दस्ता तो क्या सारे लश्कर मे भी हिम्मत नहीं है के वो नामुस ए रिसालत की तरफ आँख उठा कर भी देख सके कमीने !

क्या शुजाअत इसी का नाम है? और बहादुरी इसी को कहते है ये शुजाअत नहीं बुज दिली है और बहादूरी नहीं कमीनगी है, हिम्मत है तो खुद मेरे सामने आ ताकि अली का शैर तुझे बातिल परस्ती का मजा चखाए, उम्र बिन सअद पुकार उठा के ओ उजीद के नमक खोरों ! आज अपनी वफ़ादारी का सबूत दो और हिम्मत से काम लो, अगर पानी का एक कतरा भी इसके हलक मे चला गया तो फिर हमारे खून के दरिया बहा देगा,

चारों तरफ से घेरा डालो और तीरों की बारिश बरसा दो, फिर इमाम हुसैन पर एसा वक्त आया के किसी ने लिखा है के,

” चलते थे चार सिमत से भाले हुसैन पर, टूटे हुए थे बरछियों वाले हुसैन पर !

ये दुख नबी की गोद के पाले हुसैन पर, कातिल थे खंजरों को निकाले हुसैन पर !! “

इमाम हुसैन की शहादत का वक्त करीब आ चुका था लेकिन अब भी इमाम हुसैन लश्कर के सामने डटे हुए थे उनकी तलवार कुछ धीमी तो हुई थी लेकिन रुकी नहीं थी फिर आखिर कार खोली ने एक तीर चलाया जो इमाम हुसैन की पैशानी मे जा लगा, जो पेशानी नबी ए करीम की बोसा गाह थी, जिसको कभी हजरत मौला अली चूमते थे और जिसको बीबी फातिमा बोसा दिया करती थी, आपको चक्र आ गया, उम्र बिन सअद ने समझा के जख्म कारी है, दौड़ कर सामने आया, मगर वो नहीं जानता था के जखमी शैर और भी खतरनाक हो जाता है ।

इमाम हुसैन ने जब उसको सामने आते देखा तो फरमाया, दूर हो जा मेरी आँखों से कमीने, वो बद बखत पीछे हटा और शिमर से कहा के देखते क्या हो, अब वक्त है हिम्मत करो और अपने दस्ते को लेकर टूट पड़ो, शिमर ने अपने एक सो सवारों के दस्ते से इमाम हुसैन को नरगा मे ले लिया, मगर उस शैर ए खुदा के शैर ने उन तमाम को भी फनाह कर दिया मगर उसी शिमर लईन ने एक चाल चली के बुलंद आवाज से पुकारा के देखो भाई की मुहब्बत मे जैनब खैमे से बाहर आ गई, इमाम हुसैन ने पलट कर देखा तो जरअ बिन शारिक ने बरछे से वार कर दिया,

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जिससे आपका बाया बाजू कट गया, आपने जरअ को हमले का जवाब देना चाहा मगर नकाहत से दाया बाजू उठ न सका और फिर यजीद के लश्कर से हमले होते रहे फिर घोड़े ने जब समझा के मेरा सवार मेरी जीन से फर्श पर गिरने वाला है तो उसने बड़े ही अदब से घोटू टेक दिए, घोड़े की जीन से गिरने से पहले इमाम हुसैन ने मदीने शरीफ की तरफ देखा और अर्ज की, नाना जान ! आप ने मेरी शहादत की खबर दी थी वो पूरी हो गई और मैने अपने तमाम वादे पूरे कर दिए और आप की शरीयत की आन बचाई ।

आप फर्श पर गिरे तो खोली आगे बढ़ा और सर कलम करना चाहा मगर हाशमी शैर की हैबत और हैदरी जलाल के रौब से लरज कर जमीन पर गिर पड़ा फिर शिमर लईन आगे बड़ा और आपके सीने मुबारक पर सवार हो गया, वो सीना जिस सीनों को कभी नबी ए करीम आँखों से लगाया करते थे, जुमा का दिन था और नमाज ए जुमा का वक्त हो चुका था और शिमर लईन इमाम हुसैन के सीने पर सवार था, अब इमाम हुसैन, शिमर लईन से पूछते है कौन सा वक्त है ?, शिमर ने जवाब दिया जुमे की अजाने होने वली है ।

तब इमाम हुसैन ने कहा, खुदा के लिए जरा ठहर जा ! मै अपने अल्लाह के हुज़ूर 2 फर्ज अदा करलु, खून से वुजू तो कर चुके थे, किबला रुख हुए और 2 रकात नमाज अदा करना शुरू किया और उधर कूफे के रेगिस्तान मे अल्लाहु अकबर की सदा बुलंद हुई और इधर शिमर ने फातिमा के लाल इमाम हुसैन के गले पर खंजर चलाया और इस तरह इमाम हुसैन ने सर देकर अपने नाना की उम्मत को दीन ए इस्लाम दिया और पैगाम दिया के बातिल के आगे सर तो कट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता ।

एक एसा मै सजदा करूंगा, जिसको हश्र मे पूरा करूंगा, “

अपने नाना का वादा निभाने, कर्बला आये थे इमाम आली मकाम !

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