बेटा हजरत जैनुल आबिदीन को जंग करने से रोका और वसीयत की!
कूफे के रेगिस्तान मे अब कोई बजाहिर मददगार न था, हजरत इमाम हुसैन के नाम तमाम जा निसार साथी एक-एक करके दीन ए हक की खातिर शहीद हो चुके थे, मगर जब इमाम खैमो मे तशरीफ़ लाए तो देखा के हजरत जैनुल आबिदीन, हैदरी तलवार हाथ मे लिए मैदान ए जंग जाने के लिए तैयार खड़े है,
बुखार से जिस्म झुलस रहा है, कमजोरी से पाओ लड़खडा रहे है और सारा बदन कांप रहा है मगर नाना की आन पर जान देने के शौक मे बाप इमाम हुसैन से इजाजत तलब कर रहे है, बाप इमाम हुसैन ने अपबे बीमार बेटे को सहारा दिया और फरमाया, बेटा !
तुम जानते हो के आज इस मैदान ए कर्बला मे हमारे लिए मौत के सिवा और कुछ भी नहीं है, तुम्हारे सामने जो कुछ हुआ वो तुम देख चुके हो और अगर तुम भी मरना चाहते हो तो जाओ !, मगर तुम्हारी मौत से सादात का खातिमा हो जाएगा, हुसैन की नस्ल मुनकत हो जाएगी।
सयैदो का नाम और निशान मिट जाएगा और औलाद ए फातिमा का सिलसिला खत्म हो जाएगा और अगर तुम भी शहीद हो गए तो फिर इन पर्दा दारो को मदीना कौन पहुंचाएगा और अब तो कुरान और शरीयत की हिफाजत तुम्हारे जिम्मे है और इमाम हुसैन ने कहा के बेटा !
तुम जिंदा रहो और खुदा तुम्हें जिंदा रखे ताके दुनिया को बता सको के हुसैन ने भाई, भाँजो और अपने बच्चों की कुर्बानी तो दे दी लेकिन जालिम यजीद की फौज के सामने झुकना पसंद नहीं किया और हक का ऐलान अपनी जान देकर कहा, और पूरी उम्मत को पैगाम दे दिया के जालिम के लशकरों से डरना नहीं है बल्कि दीन ए मुस्तफा एक हुसैन ही काफी है ।
बीबी शहर बानो से आखिरी मुलाकात!
इमाम हुसैन ने बीबी शहर बानो से फरमाया ! शहर बानो मै तुम्हारी खिदमत गुजारी का हक अदा नहीं सकता, तुम ईरान की शहजादी होकर भी मेरे फिक्र और फाका पर भी फख्र किया, तुमने हर मुसीबत मे मेरा साथ एक वफ़ादार बीबी की तरह दिया और फिर मेरी वजह से तुमने अपनी उम्र भर की कमाई इस मैदान मे लुटा दी, तुमने अल्लाह की राह मे अपने बच्चों को निसार किया ।
मगर जिस शान से तूने अपने बच्चों को निसार किया है मेरे बाद इसी सब्र और शुक्र का मुजाहिरा करना, कही एसा न हो के मेरी लाश पर घोड़े दोड़ते देख कर और मेरे जिस्म के टुकड़े हवा मे उड़ते हुए देख कर सब्र और शुक्र का दामन हाथ से छोड़ दो और सब कुछ किया जाया हो जाए,
मै जानता हूँ के तुम अपनी जिंदगी की दौलत यहा छोड़ कर जाओगी और अकबर, असगर की मिट्टिया इस तपते हुए रेगिस्तान मे छोड़ कर जाओगी मगर फिर भी फातिमा के नाम को बदनाम न होने देना ।
बहिन जैनब को आखिरी सलाम और नसीहत
बीबी शहर बानो के बाद इमाम हुसैन बहिन जैनब के पास गए और उनके गले मे बाहे डाल दी और फरमाया, बहिन ! मेरा इम्तिहान तो आज खत्म हो रहा है, मगर तुम्हारा इम्तिहान कल शुरू होगा कही बे सब्री करके फैल न हो जाओ और कहने लगे के जैनब !
दुनिया मे भाइयों की बहिने होती रहेंगी मगर तुम जैसी सब्र और रजा की पैकर बहिन नहीं होगी, तुमने मदीने पाक की गलियों से लेकर कूफे के इस तपते हुए रेगिस्तान तक जिस हिम्मत के साथ अपने भाई का साथ दिया और फिर नाना की शरीयत की आन की खातिर अपने बच्चों को कुर्बान कर दिया लेकिन मेरी बहिन अब भी हर हाल मे अल्लाह का शुक्र अदा करना और हर मुसीबत मे सब्र करना
और जब मदीना जानो तो दुरूद पढ़ कर दाखिल होना, नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम के रोज़े पाक जाओ तो मेरा भी सलाम अर्ज करना और मेरी प्यारी बेटी सुगरा को मिलों तो मेरे प्यार देना, जाओ तुम्हारा अल्लाह निगह बान है और अब उठो अपने भाई हुसैन की सूरत को जी भर के देख लो फिर कयामत तक नजर नहीं आएगी।
बेटी सकीना ने घोड़े के पैरों को रोका !
बहिन जैनब को सलाम करके इमाम हुसैन उठे ! नाना पाक का अमामा सर पर बांधा, मा फातिमा की चादर कमर पर लपेटी और बाप अली की तलवार हाथ मे पकड़ी, घोड़े पर सुवार होने के बाद घोड़े का मुँह मैदान की तरफ किया और आगे चलने का हुक्म दिया, मगर घोडा अपनी जगह से हिला तक नहीं, इमाम हुसैन बार-बार घोड़े को चलाते मगर वो हरकत मे ना आया,
इमाम हैरान रह गए के या अल्लाह ये क्या माजरा है, घोडा मैदान की तरफ जाता क्यों नहीं, कही मै इस इम्तिहान मे फैल तो नहीं हो रहा हूँ, घोड़े ने गरदन उठाई और जुबान हाल से अपने सुवार को कुछ समझाया, इमाम हुसैन घोड़े से नीचे उतरे तो देखा के बेटी सकीना ने घोड़े के पाओ पकड़े हुए है, इमाम हुसैन ने बेटी सकीना को सीने से लगाया और फरमाया बेटी !
ऑनो-मुहम्मद कुर्बान हो गए तो तुम ने सब्र किया, कासिम और अब्बास निसार हो गए तो तुमने शुक्र अदा किया, अली अकबर शहीद हुआ तो तुमने फरयाद की अली असगर ने दम तोड़ा तो तुमने होसला न हारा, मगर अब मै जा रहा हूँ तो तुम रो रही हो, बेटी सकीना ने अर्ज की,
अब्बा जान ! सब शहीद हो गए मेरा दिल बहुत दुख है लेकिन अब अब्बा जान ! आप जा रहे है मै तो सकीना यतीम हो जाऊँगी, बे सहारा हो जाऊँगी और ब आसरा हो जाऊँगी, अब्बा जी ! मेरे सर पर शफकत का हाथ कौन फेरेगा, मै रोऊँगी तो चुप कौन कराएगा और मुझे मदीने कौन पहुचाएगा,
अब्बा जी ! मै रोती-रोती मर जाऊँगी, अब्बा जी ! आप के बाद मुझे बेटी कह कर कौन पुकारेगा, मुझे सीने से कौन लगाएगा और मुझे गोद मे कौन बिठाएगा, अब इमाम हुसैन बेटी को दिलासा देते है, के बेटी तुम साबिर(सब्र करने वाले) हुसैन की बेटी हो, सब्र करो, तुम्हारी मा शहर बानो हर तरह से तुम्हारा ख्याल रखेगी और फूफी जैनब तुम्हें यतीमी का एहसास न होने देंगी,
जाओ खैमे मे आराम करो, तुम्हारा खुदा हाफ़िज़ ! अली के शैर ने घोड़े को एड लगाई और चश्म-ज-दिन मे लश्कर ए यजीद के सामने जा पहुंचे ।