(01) हक और बातिल मे फर्क करो, जुल्म के खिलात उठना
इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान मे जान देकर ये पैगाम अपने नाना की उम्मत के लिए आम किया है के जब हक और बातिल आमने-सामने हो, तो मुसलमान को खामोश नहीं रहना चाहिए बल्कि जालिम हुक्मरान के सामने कलाम-ए-हक कहना सबसे बड़ा जिहाद है और ये लाजिम है ।
(02) अपने उसूलों पर कायम रहो, चाहे जान ही क्यों न चली जाए
कर्बला के वीराने मे इमाम हुसैन ने बे इंसाफी के आगे झुकने से इनकार किया और कुल उम्मत को तालीम से सरफराज किया के इस्लामी उसूल, इंसाफ और दीन की हिफाजत के लिए कुर्बानी देना सबसे बड़ा काम है आप बातिल के सामने पीछे न हटो बल्कि हक पर कायम रहो ।
(03) नमाज को किसी हाल मे मत छोड़ो
कर्बला के मैदान मे इमाम हुसैन के सजदे ने पैगाम दिया के चाहे कुछ भी हो जाए फिर सर ही कलम क्यों न हो जाए लेकिन आपको नमाज नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि नमाज फर्ज है हर एक आकील बालिक मुसलमान पर और ये हुज़ूर नबी ए रहमत की आँखों की ठंडक है, नमाज कायम ही रखनी है आखिरी सांस तक।
(04) दीन को दुनिया पर तरजीह देना
बेशक दुनिया भी अहल है लेकिन जब बात आये हक और बातिल की तो इमाम हुसैन की ये तालीम है दीन को दुनिया पर तरजीह देना ही असल मोमिन की पहचान है वरना नाम निहाद मुसलमान तो बहुत है करोड़ों मे लेकिन हक पर कायम रहने वाले तो मैदान ए महशर मे ही पहचाने जाएंगे ।
(05) सब्र, और दुआ को कभी मत छोड़ो
कर्बला के हर एक लम्हे मे आप हजरत इमाम हुसैन ने सब्र का दामन थामे रखा और वो चाहते तो क्या कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन बस इस दीन की आबरू को बचाना था और इस उम्मत को बताना था असल दीन क्या है और अपने रब को किस तरह राजी किया जाता है और रब किस तरह अपने नेक बंदों को आजमाता है इसलिए सब्र और दुआ को मजबूती से पकड़े रहो, बेशक अल्लाह पाक सब्र करने वालों के साथ है ।