हज़रत अली जब आये जंग-ए-खैबर मे – बहादुरी का वो मंजर जो आज भी रूह को हिला देता है!

मेरे अजीजों जब जंग ए खैबर का ऐलान हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने किया तो ये सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी बल्कि ये हक और बातिल के दरमियान वो फैसला था, जहा इस्लाम को मिटा देने की साजिशै अपने उरुज पर थी और यहुदी कबीले ने खैबर के किले को एसा मजबूत बना लिया था के अरब के बहादुर भी उसके सामने ठिठक जाते थे ।

लेकिन उस वक्त के लम्हों ने एक एसा मर्द ए मुजाहिद मांगा जो सिर्फ तलवार नहीं, ईमान की ताकत से भी लैस हो – और वो थे हजरतए अली रजी यल्लाहु तआला अनह !

जब नबी ए करीम ﷺ ने ऐलान किया

हुज़ूर नबी ए रहमत ﷺ ने इरशाद फरमाया, ” मै कल उस शख्स को झंडा दूंगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह और उसका रसूल उससे मुहब्बत करते है। ” अब तमाम सहाबा ए इकरा सोचने लगे के पता नहीं वो खुश नसीब कौन होगा और सबक नजरे उस मुबारक शख्स की तलाश मे थी जिसे ये अनमोल फजीलत मिलने वाली थी अगली सुबह जब रसूल ए आजम ﷺ ने पुकारा:

अली इब्ने तालिब को बुलाओ ” तो हर दिल ये गवाही देने लगा – अब खैबर की दीवारे कापेंगी।

हजरत ए अली की Entry – ये वक्त ठहर सा गया

हजरते अली की आँख मे तकलीफ थी लेकिन इसके बावजूद हुज़ूर नबी ए रहमत ﷺ के हुजरे मे तशरीफ लाये, नबी ए करीम ने उनकी आँख पर अपनी मुबारक लार लगाई और दुआ की, हजरतए अली की आँख फौरन ही ठीक हो गई और फिर आपको तलवार दी गई – जुल्फिकार।

अब जिस वक्त जनाबे अली ने इस्लामी लश्कर का झंडा थामा, तो दुश्मन भी समझ गया कि उनका मुकाबला किसी आम जंगी से नहीं बल्कि शैर ए खुदा से होने जा रहा है ।

जब मरहब सामने आया..

यहुदियो की तरफ से खैबर का सबसे ज्यादा बहादुर और ताकतवर था मरहब, वो कहता था कि, ” मै मरहब हूँ, जिसको माँ ने शैर पैदा किया, मै तलवार से सरो को उड़ा देता हूँ, मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। ” लेकिन जब हज़रतए अली उसके सामने आये तो लफ्जों मे नहीं, अमल मे दिखाया कि,

” मर्द वो नहीं जो दावा करे, मर्द वो है जो मैदान मे उतर कर दुश्मन के दिल मे खौफ बिठा दे । ” जनाबे मौला अली ने एक ही वार मे मरहब का सर धड से जुदा कर दिया और यही से खैबर का किला कापेंने लगा ।

जब किले का दरवाजा ही उखाड दिया

जंग के दौरान जब किले का लोहे का दरवाजा हज़रत ए अली के उठाया जिस दरवाजे को 7 लोग मिलकर भी नहीं हिला पा रहे थे उसको आपने अकेले ही उठा कर अलग कर दिया, मेरे अजीज सोचिए ! ये ताकत थी शैर ए खुदा और शैर ए रसूल की और ये ताकत थी हजरतए अली के ईमान की ।

मुहब्बत, ईमान और शुजाअत के मंजर

मेरे अजीजों जंग ए खैबर मे हजरते अली की बहादुरी इस्लामी तारीख का वो सुनहरा सफा है जिसे पढ़कर आज भी हर एक दिल ” या अली ! ” की सदाये बुलंद करता है ।

आपके दिल मे दीन ए इस्लाम की मुहब्बत, नबी ए करीम की इताअत और दुश्मनों पर रहमत की बजाये हक की तलवार बन जाना – इससे ये साबित होता है कि जंग सिर्फ ताकत की ही नहीं होती बल्कि यकीन की भी होती है ।

हमने आज हज़रतए अली से क्या पैगाम हासिल किया ?

मेरे अजीज आज हम मुसलमानो को भी इसी खैबर जैसे हालात का सामना है और ईमान कमजोर हो चला, बे अमल हो चले, दिलों मे लोगों का खौफ आ चुका है लेकिन अगर हम हज़रतए अली की तरह ईमान को मजबूत करले और पक्के ईमान के साथ दिए तो यकीन मानिये आज भी हम अपने दौर के खैबर को फतह कार सकते है ।

इसके लिए चाहिए के नेक काम करे और सुन्नत ए रसूल पर चले हराम कामों से दूर रहे अपने रब का खौफ ही दिल मे रखे और अल्लाह की रिजा के लिए ही अपने काम-काज को अंजाम दे, इंशा अल्लाह कामियाबी अल्लाह पाक को जरूर देगा ।

आपका क्या ख्याल है ?

क्या आपको लगता है कि आज के मुसलमानों मे हजरतए अली जैसी शुजाअत की जरूरत है ? क्या हम अपने घर, समाज और नफ़स के खैबर को फतह करने के लिए तैयार है?

आप अपनी राय comment करे और इस पोस्ट को शेयर करे ताकि आपके करीबियो को भी हजरतए अली जैसा ईमान का जोश पैदा हो । अल्लाह पाक हम सबको हज़रतए अली की शुजाअत का सदका नसीब फरमाए .. आमीन।

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