कर्बला एक तपता हुआ रेगिस्तान जहा सूरज भी शर्मसार है, जमीन अंगारों सी दहक रही है और इसी जमीन पर नबी ए करीम ﷺ के प्यारे नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने अहले बैत और चंद वफ़ादार साथिओ के साथ डटे है सामने यजीद की फौज का हजारों का लश्कर है मगर इमाम हुसैन झुके नहीं ।
यजीद की चाहत थी के कैसे भी करके हुसैन मुझसे बैत करले, ताकि उसकी नाजायज हुकूमत पर शरीयत की मुहर लग जाए लेकिन इमाम हुसैन जानते थे के ये सिर्फ एक बैत नहीं बल्कि इस्लाम की बुनियाद कमजोर करने की नापाक साजिश है और उन्होंने साफ-साफ का दिया के,
” मौत को गले लगा लूँगा, मगर जालिम की बैत नहीं करूंगा । “
मेरे अजीजों कर्बला मे पानी तीन दिन से बंद था, मासूम बच्चे तड़प रहे थे, अली असगर, की प्यास ने आसमान को रुला दिया, लेकिन इमाम हुसैन के सब्र की इंतिहा देखिए के, – ना शिकवा, ना गिला सिर्फ हक के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया ।
अब वक्त आया के एक-एक करके इमाम हुसैन के अजीज शहीद होते गए, हजरत अली अकबर की जवानी, हजरत अब्बास का बहादुर बाजू और आखिर मे वो लम्हा जब 6 महीने के अली असगर को गोद मे उठाकर पानी की भीख मांगी गई लेकिन जवाब मे तीर मिला जो के 6 महीने के अली असगर के सीने पर जाकर लगा ।
आखिर मे इमाम हुसैन भी मैदान मे आये, वो क्या वक्त था के, तन अकेला था, मगर ईमान से भरा हुआ, भूख प्यास, थकान – सब कुछ बर्दाश्त किया लेकिन हक से पीछे नहीं हटे ।
और जब उनका सर मुबारक तन से जुदा किया गया, तो कर्बला की जमीन ने गवाही दी – ” यह शहादत हार नहीं, इस्लाम की सबसे बड़ी जीत है । “
मेरे अजीजों कर्बला हमे सिखाता है के जुल्म चाहे जितना भी ताकतवर हो अगर आप हक पर है तो अल्लाह आपके साथ है, इमाम हुसैन का पैगाम आज भी जिंदा है, ” जुल्म के सामने झुकना हराम है, और हक के लिए जान देना इबादत है, शहादत है । “