मेरे अजीजों दीन ए इस्लाम मे इस्लामी केलेडर के हिसाब से मुहर्रम पहला महीना है और इसको इस्लाम मे बहुत मुकद्दस माना जाता है । ये माह फकत नये साल का पहला महीना ही नहीं है बल्कि,
ये महीना शहादत और उसमे सब्र-कुर्बानी का पैगाम लेकर आता है इस महीने मे बहुत से अहम वाकियात हुए है लेकिन सबसे बड़ा और दर्दनाक वाकिया कर्बला का रहा है जिसमे हजरतए इमाम हुसैन और उनके कुछ साथियों ने शहादत का जाम पीकर कर हमेशगी की फतह हासिल की थी ।
इस्लामी कैलेंडर और मुहर्रम का तारूफ़
इस्लामी हिजरी साल की शुरूआत मुहर्रम से ही होती है और ये केलेडर चाँद पर ही आधारित होता है और इसमे 12 महीने होते है मुहर्रम पहला महीना होता है और ये महीना चार मुकद्दस महीनों मे से एक है जिसका जिक्र कुरान मजीद की सूरह तौबा मे भी मिलता है ।
मुहर्रम की फ़ज़ीलत हदीस शरीफ मे क्या आई है ?
नबी ए करीम ﷺ ने फरमाया है के मुहर्रम अल्लाह पाक का महीना है और इसमे नेकी के काम करना बहुत सवाब का बाईस होता है और खास तऔर पर आशुरा यानि 10 मुहर्रम का दिन बहुत अहमीयत का हामिल है।
हदीस शरीफ मे आता है के, ” जो शख्स 10 मुहर्रम को रोजा रखे, अल्लाह उस एक दिन के बदले पिछले साल के गुनाह माफ कर देता है ।(सहीह मुस्लिम)
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कर्बला का वाकिया हकीकत – सब्र, कुर्बानी और हक की मिसाल
कर्बला का वाकिया एक वाकिया है जिसको पढ़ने मे या सुनने मे या सुनाने मे हर एक शख्स का दिल रो ही पड़ता है ये वाकिया सन 61 हिजरी मे इराक के मैदान ए कर्बला मे हुआ था । उस वक्त उम्मत दो हिस्सों मे बट गई थी ।
एक तरफ यजीद था – जो ताकत से खिलाफत पर काबिज होना चाहता था और दूसरी तरफ इमाम हुसैन थे जो इंसाफ, हक और इस्लामी उसूलों के लिए खड़े थे ।
हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ के इस नवासे हजरतए इमाम ए हुसैन ने कभी भी जालिम के आगे सर नहीं झुकाया और उन्होंने अपने पूरे खानदान और तमाम साथियों के साथ भूख, प्यास और शहादत को गले लगाया,
लेकिन नाइंसाफी और खिलाफ ए रसूल को कुबूल नहीं किया ये वाकिया हम सबको तालीम देता है के हक और सच्चाई के लिए जान भी देनी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए चाहे कुछ भी हो जाए और यही हुसैनी होने की पहचान है ।
हजरतए इमाम हुसैन की शहादत का क्या असर पड़ा उम्मत पर
हजरते इमाम हुसैन की शहादत से पूरी उम्मत को एक दर्द मिला के चाहे कुछ भी हो जाए आपको बातिल के सामने कभी नहीं झुकना है और न ही उससे समझोंता करना है और इसके साथ जब नमाज का वक्त हो जाए तब आपको मुसल्ला बिछा देना है ।
इसके साथ एक सबक ये भी मिला के जुल्म के आगे झुकना इस्लाम नहीं है और उनकी कुर्बानी आज पूरी दुनिया के मुसलमानों के दिलों मे जिंदा है इसलिए हर साल मुहर्रम मे मुसलमान उन पर सलाम भेजते है और इनके लिए इसाले सवाब भी करते है ।
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मुहर्रम मे क्या-क्या करना चाहिए ?
- हर एक मोमिन को 9 और 10 मुहर्रम के रोज़े रखने चाहिए ।
- इमाम हुसैन की सीरत खुद भी पढे और अपने बच्चों को भी पढ़ाये ।
- घर मे और मस्जिद मे कसरत के साथ इस्टिगफार करे ।
- कर्बला मे इमाम हुसैन जो सबक दिया उसको दोहराए ।
- गरीबों-यतीमों को खाना खिलाये ।
- झूठी बाते और खुराफ़ातों से बच्चे बल्कि दीन की किताबे पढे ।
मुहर्रम से ये सबक हासिल करे
मेरे अजीजों मुहर्रम फकत एक तारीख ही नहीं है बल्कि ये हकीकत मे इंसानियत के लिए एक खास पैगाम है सब्र का सच्चाई का और हक के लिए खड़े होने का ।
मेरे अजीजों हजरतए इमाम हुसैन ने हमे यह दर्स दिया है के ” सर कटाया जा सकता है लेकिन झुकाया नहीं जा सकता । ” यही है कर्बला के मैदान की सबसे बड़ी तालीम।