शहजादे अली अकबर की शहादत – कर्बला का जांबाज नौजवान

कर्बला का मैदान सिर्फ जंग का ही नहीं बल्कि ईमान, सब्र और कुर्बानी का सबसे बड़ा मरकज है, हज़रत इमाम हुसैन के बेटे शहजादे अली अकबर की शहादत उस ववादारी और बहादूरी की कहानी है, जिसे सुनकर आज भी दिल कांप उठता है।

अली अकबर नबी ए करीम ﷺ की शबीह थे, उनकी आवाज, चाल-ढाल और सीरत हुज़ूर ﷺ से मिलती थी, जब अली अकबर ने जंग की इजाजत मांगी तो इमाम हुसैन की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन उन्होंने सब्र करते हुआ कहा, ” जा बेटा, अल्लाह तुझे अपनी हिफाजत मे रखे । “

अली अकबर ने जंग का मैदान अपने शुजाअत और बहादुरी से लहू-लुहान कर दिया और कई दुश्मनों को हलाक किया मगर, तादात बहुत ज्यादा थी, आखिरकार, दुश्मनों ने चारों तरफ से घेर कर उन्हे शहीद कर दिया, उनकी शहादत की खबर जब इमाम हुसैन तक पहुची,

तो उन्होंने लिपटकर कहा – “ए बेटे, तू चला गया, मगर तेरा जज्बा कयामत तक जिंदा रहेगा। “

मेरे अजीजों शहजादे अली अकबर की शहादत, नौजवानों के लिए सबक है के हक के रास्ते मे जान देना भी एक इज्जत है, कर्बला की ये कुर्बानी इस बात की गवाही है के सच्चाई के लिए अगर अली अकबर जैसे नौजवान हो, तो यजीदी ताकते काभी कामयाब नहीं हो सकती है ।

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