बेटी सुगरा का खत अब्बा हुसैन के लिए !

एक शख्स ऊटनी सवार मदीने पाक की गलियों मे से गुजरता हुआ एक तंग सी गली मे पहुचा, उसने देखा के एक टूटे हुए मकान के दरवाजे मे जमीन पर छोटी सी बच्ची या बाबा हुसैन! या बाबा हुसैन के नारे लगा रही है, उस छोटी बच्ची के दर्दनाक नारे सुन कर वो ऊंट सवार उसके पास गया!

और पूछा ए पाक बीबी तू कौन है और दरवाजे पर बैठी किसको पुकार रही है? ऊंट सवार हमदरदाना सवाल से सुगरा को कुछ होसला मिला और फरमाया, बाबा-बाबा! मै इमाम हुसैन की बिछड़ी हुई बेटी हूँ मेरा नाम फातिमा सुगरा है। वो मुझको बीमार छोड़ कर कूफे चले गए है,

मै बीमार हूँ, दवा देने वाला कोई नहीं, दुखी हु तसल्ली देने वाला कोई नहीं, मेरे बाबा जान इमाम हुसैन ने कहा था के एक महीने के बाद अली अकबर तुम्हें ले जाएगा, मगर तीन महीने हो गए है, उनका कोई पता नहीं और न ही वो आये है, सुबह से लेकर शाम तक दरवाजे पर बैठी उनका इंतेजार करती हूँ।

और हर आने जाने वाले से अपने बाप का पता पूछती हूँ मगर कोई भी उनका पता नहीं देता है, ये मेरे नाना की उम्मत सुबह से शाम तक मेरे सामने आती भी है और जाती भी है । मगर मुझ गरीब बेटी को कोई पूछता ही नहीं।

ए अल्लाह के नेक बंदे! अगर तू कूफे की तरफ जा रहा है तो खुदा के लिए मुझे भी साथ ले चल और अगर कूफे तक नहीं जाना तो सही, जहा तक तू ले जा सकता है मुझे ले चल। आगे का मुझे रास्ता बता देना, मै गिरती-बडती, उठती-बैठती, हापती-कापती कूफे मे पहुँच जाऊँगी !

और अगर तू ऊटनी पर नहीं बिठा सकता तो सही मै अपने माँ-बाप और बहिन-भाइयों को मिलने की खुशी मे तेरे ऊंट के आगे-आगे दौड़ती जाऊँगी। मै अपनी भूक और प्यास की शिकायत भी नहीं करूंगी, मै रास्ते मे तुझे कोई तकलीफ नहीं दूँगी, मुझे बीमार समझ कर न छोड़ना, अगर चे मै बीमार हूँ मगर माँ-बाप की मुलाकात की खुशी मे मेरी बीमारी जाती रहेगी और बहिन-भाइयों को मिलने के शौक मे मुझे हिम्मत आएगी।

ए खुदा के नेक बंदे! अपने बच्चों का सदका मुझ पर रहम कर, मुझ पर तरस खा और मेरी फर्याद को कबूल कर, मै दुखी हूँ, मेरा सहारा बन और मै बीमार हूँ मुझे दवा दे, खुदा तेरे बच्चों की उम्र दराज करे, मै मुफलिस हूँ, मेरे पास और तो कुछ नहीं ये 2 जोड़े कपड़ों के है ये ले लो !

तेरे बच्चों के काम आएंगे और अगर मै कूफे पहुँच गई तो तुझे और भी बहुत कुछ अता करूंगी और कयामत के दिन होस कौशर से सैराब करूंगी! इतना कहकर वो बच्ची फिर या बाबा हुसैन या बाबा हुसैन पुकारती हुई बेहोश हो गई, कासिद ने आगे होकर उस बच्ची के सर पर हाथ रखा तो पता चला के बच्ची बुखार मे झुलस रही है ।

और इतनी कमजोर है के उठ नहीं सकती, कासिद ने बीमार बच्ची के मुह पर ठंडा पानी छिड़का, वो होश मे आगई तो पूछने लगी, क्या मेरे अब्बा जान आ गए है? क्या अली अकबर मुझे लेने आ गया है? क्या मेरा नन्ना सा भाई असगर भी साथ है? कासिद ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया बेटी! मै भी खानदान ए नबूवत का गदा गर हूँ और अहले बैथ के घराने का खादिम हूँ।

घबराओ नहीं, मै तुम्हें जरूर ले चलता मगर देख लो मेरे ऊंट पर कजावह नहीं है और तुम बीमार हो और कमजोर हो, हा मै तुम्हारा खत तुम्हारे बाप तक जरूर पहुंचा दूंगा, और अगर चे मेरे बच्चे बीमार है और मै उनकी दवा के लिए ही मदीने आया था, मगर अब जब तक तुम्हारा खत तुम्हारे बाप को न पहुंचाउ उस वक्त तक अपने बच्चों को देखना हराम है ।

बिनते हुसैन, कासिद से ये सुन कर बोल उठी, बाबा जी! न खुदा के लिए एसा न करो, और जाओ पहले अपने बच्चों को दवा पिलाओ, एसा न हो के उनका सब्र मुझ पर पड़े, कासिद ने कहा बेटी नहीं! अब ये नहीं हो सकता के मै अब अपने बच्चों की खातिर तेरी इस खिदमत गुजारी मे देर करके खुदा और रसूल की नाराजगी अपने सर लू और ये लो कपड़े,

मै इस खिदमत गुजारी का सिला तुमसे नहीं तुम्हारे नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम से कयामत के दिन लूँगा और फिर अपने माँ-बाप और बहिन भाइयों से बिछड़ी हुई सुगरा ने एक दर्द भरा खत लिख कर सवार के हवाले किया, सवार ने अपने ऊंट का मुह कूफे की तरफ मोड़ा और ये दुआ करता हुआ रवाना हुआ, के .. अल्लाह मै मंजिल ए मकसूद पर पहुँच जाऊ।

उधर सुगरा के कासिद ने दुआ की और इधर खुदा ने फरमाया, जिब्राइल मेरे प्यारे हुसैन की बेटी का खत लेकर ये कासिद कर्बला जा रहा है, जमीन की तनाबे खींच लो। और इधर कर्बला मे नन्नी सी लाश को कर्बला की तपती हुई रेत मे दफन करने के बाद हजरत इमाम हुसैन रजी यल्लाहु तआला अनह खैमो की तरफ वापिस आ रहे थे।

इमाम हुसैन ने मदीने की तरफ निगाह उठाई तो दूर गुबार उड़ता हुआ नजर आया, समझे शायद कही से कोई मदद आ रही है, आप ठहर गए, गुबार तेजी से करीब आता गया और फिर उसी गुबार से एक सवार नमूदार हुआ, वो करीब आया, उसने अपने ऊंट को बिठाया और इमाम मजलूम की खिदमत अकदस मे हाजिर हुआ।

और अर्ज की या इमाम ! आप यहा है? वो सामने लश्कर किसका है और खैमो मे कौन है ? आप तो कूफे गए हुए थे और सुना था के कूफे वाले आपके साथ है? सयैदा के लाल ने जवाब दिया, कूफे वालों ने धोका दिया है, वो लश्कर यजीद का है और इन खैमो मे नामूस ए रिसालत छुपी हुई है।

और फिर पूछा! तुम कौन हो ? कहा से आये हो और तुम्हें किसने भेजा है ? सवार ने अर्ज की, आका मै मदीने पाक से आया हूँ और आपकी बेटी सुगरा का कासिद हूँ, इमाम हुसैन की आँखों से आँसू की छड़ी लग गई और फरमाया, मेरे करीब आ जाओ! तुम मेरी बेटी सुगरा के कासिद हो,

मेरा दिल चाहता है के तुम्हारे कदम चूप लू भाई! तुम ने मेरे लिए बहुत तकलीफ उठाई और मुझ पर बहुत अहसान किया और इस अहसान का बदला मै कयामत के दिन अदा करूंगा, बताओ मेरी बेटी कैसी है ? कासिद ने अपनी जेब से सुगरा का खत हजरत इमाम हुसैन के हाथों मे दे दिया ।

इमाम हुसैन ने बेटी का खत सीने से लगा लिया और फिर जो चूमा और फिर खोल कर पढ़ा, उसमे लिखा था, ” अब्बा जान ! आप की बिछड़ी हुई बेटी सलाम अर्ज करती है- अब्बा जान ! आप तो कह गए थे के एक महीने के बाद अली अकबर आएगा और तुम्हें ले जाएगा मगर तीन महीने गुजर गए है । ” और लिखा था के,

” मै सारी-सारी रात आपके इंतेजार मे सोती नहीं हूँ, सुबह से लेकर शाम तक दरवाजे पर बैठी आप की राह तकती रहती हूँ, और हर आने जाने से आपका पता पूछती हूँ मगर कोई आपका पता नहीं देता, अब मै अच्छी हूँ, खुदा के लिए अब मुझे अपने पास ही ले चलो, भाई अकबर को भेजो मुझे आकर ले जाए,

अम्मा जान और फूफी जान भी जाकर मुझे भूल गई है, भूले क्यों न उनके पास अकबर और असगर है और औने मुहम्मद है, वो उन के साथ अपना जी बहलाती होंगी, मगर मुझ दुखयारी का किसी ने पता तक नहीं किया, अच्छा मै आऊँगी तो शिकायत करूंगी और भाई अकबर से कहना के भाई अपनी बहिनों के साथ एसे ही वादे किया करते है ?

तुमने तो कहा था के मै खुद एक महीने के बाद तुम्हें ले जाऊंगा, मगर तुम्हारा रास्ता देखते तीन महीने हो गए है।” और लिखा था के, ” अब्बा जी ! मेने भाई असगर के लिए कपड़े सीए है और खिलौने खरीदे है, जब आऊँगी तो अपने हाथों से उसको हाथों से उसको पहनाऊँगी, अब वो चलता होगा और बाते भी करता होगा।”

इमाम हुसैन ने बेटी का खत पढ़ा तो कलेजा फट गया और फरमाया, भाई ! खुदा तुम्हारा भला करे और तेरे बच्चों की उम्र दराज करे, जिस बच्ची का खत तू लेकर आया है वो मेरी बेटी सुगरा है और मै तुम्हारी इस खिदमत गुजारी और तकलीफ उठाने का कैसे शुक्र अदा करू,

क्या खिदमत करू! गर्मी का मौसम है, तुम दूर से आये हो, तुम्हें प्यास तो जरूर होगी मगर अफसोस के मै तुम्हें पानी भी नहीं पिला सकता, इसलिए के उमर बिन सईद ने आज तीन दिन से अहले बैथ पर पानी बंद कर दिया है और आज ऐन इस वक्त जब के औनो मुहम्मद दीन की आबरू पर कुर्बान हो चुके है ।

जब के कासिम और अब्बास इस्लाम की अजमत पर निसार हो चुके है, जब अली अकबर शरीयत ए मुस्तफा अलैहिस सलाम की आन पर शहीद हो चुका है और जब मजलूम ! असगर हर और सदाकत की बुलंदी की खातिर मेरी झोली मे दम तोड़ चुका है और हब हुसैन अपने अजीजों को शिद्दत ए प्यास से तड़पता देख चुका है !

और जब हुसैन अपने साथियों की लाशे अपने कंधों पर उठा-उठा कर थक चुका है और जब हुसैन खुद भी खिलाफत ए इस्लामिया और अमानत ए इलाही की हिफाजत की खातिर अपना सर भी कटवाने को खड़ा है, इस वक्त अगर हुसैन की कोई आखिरी ख्वाहिश ये थी के,

आखिरी वक्त मे अपनी बीमार बेटी सुगरा को देख लू इसलिए ए खुदा के नेक बंदे! तूने मुझ गरीब पर बड़ा अहसान किया है के मेरी बेटी का खत लेकर इस खूनी मैदान मे आ गया है, आज तो नहीं, कल इस अहसान का बदल होस कोसर के जाम पिला कर अदा करूंगा और अब एक नेकी और भी करो के,

मेरा पैगाम भी मेरी बच्ची तक पहुंचा दो और जो कुछ तुमने देखा है उसको जा कर बता दो और कहना के औनो मुहम्मद कुर्बान हो चुके है, कासिम और अब्बास दफन हो चुके है अली अकबर शहीद हो चुका है और जिस असगर के लिए तुम ने कपड़े सीए है और खिलौने खरीदे है वो दम तोड़ चुका है,

और जिनको तू याद करती है वो सब खत्म हो चुके है और तेरा बाप हुसैन भी चंद साँसों का महमान है मगर ये गवाही देना के तुम्हारे बाप ने तुम्हारे खत को पहले सीने से लगाया और फिर चूम कर खोला था। ” ए मेरी बेटी के कासिद! अब तो यहा से जल्द निकल जा,

कही एसा न हो के दुश्मन तुझे भी कत्ल करदे और मेरा पैगाम मेरी बेटी तक न पहुंच सके, बेटी के कासिद को विदा करके इमाम हुसैन अली अकबर की लाश पर गए और फिर बेटी सुगरा का खत लेकर खैमो मे गए और तमाम को पढ़ कर सुनाया, सुनकर तमाम अहले बैथ रोने लगी !

एक कहराम मच गया और एक हश्र बरपा हो गया, हर एक ने अपनी बिछड़ी हुई सुगरा के खत को सीने से लगाया और चूमा ।

किताब का नाम – खाके कर्बला

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