इमाम हुसैन के दोनों भांजे ऑनो-मुहम्मद की शहादत

हजरतए वहब की शहादत के बाद हजरत इमाम हुसैन खैमे मे वापिस आये, बीबी शहर बानो अपनी चादर के दामन से अली असगर को हवा दे रही थी ले हजरतए फातिमा के लाल ने अपनी हमशीरा बहिन जैनब से फरमाया ! बहिन जैनब उठो और भाई हसन की कमान दो ! नाना मुस्तफा करीम की दस्तार दो !

बाबा अली की तलवार दो और जी भर के अपने भाई की सूरत देख लो, फिर नजर नहीं आएगी, बहिन रोते हुए उठी और भाई के पाउ मे गिर पड़ी और हाथ जोड़ के अर्ज की के ए मेरे प्यारे भाई, भाई हुसैन ! इस नाजुक घड़ी और इम्तिहान के वक्त जब के हमारी मजलूमी और बे कसी पर आसमान वाले भी रो रहे है,

बहिन अपने भाई के आगे एक दरखास्त पेश करती है और मुझे उम्मीद है के अल्लाह के शैर, अली का लाड़ला और सखी माँ का जाया अपनी बहिन की ये दरख्वास्त कबूल करेगा, नवासा ए रसूल ने फरमाया, जैनब ! कहो क्या कहना चाहती हो? बीबी जैनब ने अर्ज की ! हमारे नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम की हदीस है,

ये भी जाने – बेटी सुगरा का खत अब्बा हुसैन के लिए !

के मुसीबत के वक्त कोई सदका दिया जाए तो खुदा उस मुसीबत को टाल देता है और इससे बढ़ कर और मुसीबत क्या आएगी के दुश्मनों ने हम पर पानी भी बंद कर दिया है और हमारे खून के भी प्यासे है, इस लिए बहतर है के किसी चीज का सदका दिया जाए, इमाम आली मकाम की आँखों से आँसू जारी हो गए,

और फरमाया, मेरी बहिन ! नाना पाक की ये हदीस तो सही है मगर इस मजलूमी और गरीबी मे मेरे पास कोई एसी चीज नहीं है जिस का मै सदका दे सकु, हमारे पास तो इस वक्त पानी की बूंद भी नहीं है, फिर सदका किस चीज का दू, बहिन जैनब ने इल्तिजा की, भाई हुसैन !

आज सदके के लिए पानी के मशकीजो की जरूरत नहीं है, आज सदका देने के लिए मेरे दोनों बच्चे ऑनो मुहम्मद जो हाजिर है और ये देखो ये दोनों नामूस ए इस्लाम की खातिर कुर्बान होने के लिए बेकरार है और मै जिद हार जाती हूँ मेरे बच्चे पीछे-पीछे फिरते है और कहते है अम्मा जान !

हमे मामू जान से मैदान मे जाने की इजाजत ले दो, शहजादे कौनेन की आंखे अश्कबार हो गई और फरमाया, बहिन ! किस मुँह से तेरे बच्चों को इजाजत दू, मै अपनी खातिर अपनी बहिन को बे औलाद नहीं कर सकता, हजरतए जैनब ने फिर दामन फैला दिया और अर्ज की आका !

वो बहन कितनी खुश नसीब है जिस की औलाद अपने भाई पर निसार हो जाए और मुझे तो अफसोस है के मेरे 2 ही बच्चे है, अगर हजार भई होते तो आज नाना पाक की शरीयत की लाज रखने की खातिर कुर्बानी करके फख्र महसूस करती, या हुसैन ! बहिन के सवाल को रद्द न करो !

वो देखो शोके शहादत मे कितने बे ताब है, मेरे भाई हुसैन आज अगर अब्बा हुज़ूर मोला अली होते तो सिफारिश करते, माँ होती तो हिमायत लेती और भाई हसन होता तो मदद करता , मगर ने बाप है, न माँ है, न भाई है और न नाना, फिर किस की सिफारिश लाऊ, किसकी हिमायत हासिल करू और किसकी मदद तलाश करू।

माँ फातिमा की चादर पाक का सदका मेरे बच्चों को मैदान मे जाने की इजाजत दे दीजिए। तब इमाम हुसैन ने एक बार फिर अपनी बहिन को समझाया के जैनब अपने इरादे से बाज आ जाओ और अपने बच्चों से कहो के वो खैमे मे जा कर आराम करे, आज मामू के पास मौत के सिवा और कुछ नहीं है,

और मै अपनी बहिन की उम्र भर की कमाई को लुटाना नहीं चाहता। बहिन जैनब ने फिर पाओ पकड़ लिए और दस्त ए सवाल बड़ा दिया के भाई हुसैन! सखी बाप के बेटे हो, सखी माँ के लख्ते जिगर हो और नाना के नवासे हो, बहिन के कासे मे भी खैरात डाल दो, वरना मै कियामत के दिन नाना मुस्तफा करीम को किया जवाब दूँगी !

बाप अली को कौन सा मुँह दिखाऊँगी और माँ फातिमा के पास किस तरह जाऊँगी और या इमाम! आप फिक्र न करे, इंशा अल्लाह मेरे बच्चे अगर चे 9 साल के है मगर अली की शुजाअत पर हरफ नहीं आने देंगे और मेरी कमाई आज अगर नेक काम के लिए और नेक मकसद की खातिर लगती है तो लगने दो।

और फिर बीबी जैनब ने अपने बच्चों को इशारा किया तो ऑनो मुहम्मद ने मामू जान के पाओ चूमे और फिर इल्तिजा की, मामू जान आप हमारी कमसनी पर न जाए, हमारी रगों मे भी शैर ए खुदा का खून है और इंशा अल्लाह हम अपने छोटे-छोटे तीरों और छोटी-छोटी तलवारों से दुश्मनों की सैफ उलट देंगे और यजीदी लश्कर को ये बता देंगे

” अली का घर भी क्या है घर है के जिस घर का हर एक बच्चा, जिसे देखो वही शैर ए खुदा मालूम होता है । “

इमाम आली मकाम की आँखों से आँसू जारी हो गए और बच्चों की इस दलेराना गुफ्तगु से खुश होकर फरमाया, बहिन जैनब मेरी तरफ से इजाजत है जाओ और बच्चों को तैयार करो, जनाबे जैनब ने फिर कहा के मामू जान के कदमों मे गिर कर शुक्रिया अदा करो के तुम्हारी कुर्बानी कबूल करली!

दोनों बच्चे फिर मामू जान के कदमों मे गिर गए, माँ ने बच्चों को उठाया और कहा, उठो मेरे लाल मेरे साथ चलो, बीबी जैनब ने दोनों बच्चों को खैमे मे ले आई, अपने हाथों से कपड़े पहनाए, आँखों मे सुरमा लगाया, जुलफ़े सवारी और मिट्टी से तयमुम करवाया। बीबी शहर बानो ने पूछा,

जैनब क्या कर रही है ? जवाब दिया, बच्चों को दूल्हा बना रही हूँ, ये अरमान था जो पूरा हो गया, फिर छोटे-छोटे ऑनो मुहम्मद माँ के कलेजे से लिपट गए, माँ ने कलावा फिर लिया, आंखे अश्कबार थी और जुबान खामोश, फिरिश्ते तड़प उठे और हूरे चिल्ला पड़ी और खुदा ने फरमाया जिब्राइल जैनब के होसले को देखो,

उसका सब्र देखो और माँ के अजम को देखो, अगर मुझे सएदो का इम्तिहान मकसूद न हो तो कयामत तक जैनब का कलावा न खोलता, बीबी जैनब से फरमाया बेटों ! मै खुश हूँ के तुम जैसे फरमाबरदार गाजी और जा निसार बच्चे पेट से पैदा हुए, और याद रखो ! अगर उमर बिन सअद पूछे के तुम कौन हो तो ये कहना के,

हम जैनब के बेटे है, कहना के हम इमाम हुसैन के गुलाम है, खबरदार! मेरा नाम जुबान पर न आअये और अली की शुजाअत को डुबा न लिखने देना, फातिमा की चादर को दागदार न करना और नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम की आन को रुसवा न होने देना, बेटों ! तुम्हारी इस इताअत गुजारी पर जमाना फख्र करेगा।

तुम्हारी इस जा निसारी पर दुनिया नाज करेगी और तुम्हारी इस कुर्बानी पर मुसलमान झूमेंगे, अली खुश होंगे, मुस्तफा अलैहिस सलाम फख्र करेंगे और फातिमा सदके जाएगी और नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम से होस कोसर के प्याले होंगे । जिस वक्त बच्चों ने खैमे के दरवाजे पर आखिरी बार सलाम के लिए सरो को झुकाया तो उस वक्त खुदा ही जानता है,

के बीबी जैनब के दिल पर क्या गुजरी होगी और फिर बेटों को ये कहते हुए रुखसत किया के दुनिया की माये तो बच्चों को रुखसत करते वक्त दुआए देती है के जिंदा जाओ और जिंदा वापिस आओ मगर तुम्हारी माँ ये दुआ करती है के जिंदा जाओ और शहीद होकर आओ और सर लेकर जाओ और सर कटवाके आओ ।

हजरत हाजिरा ने भी अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान होने के लिए रुखसत किया था मगर वो अंजाम से बे खबर थे, लेकिन वाह री ! बीबी जैनब तेरे होसले पर कुर्बान, तेरे सब्र पर फिदा, तेरे अजम पर निसार और तेरे मजबूत दिल पर सदके, के बच्चों की मौत सामने नजर आ रही है हजार तलवारे देख रही है और अपने बच्चों के अंजाम को भी जानती है के,

बच्चे अब जिंदा वापिस नहीं आएंगे मगर फिर भी तेरे दिल पर कोई मलाल नहीं आया और तूने होसला नहीं हारा और अपने हाथों से सब्र और अल्लाह की रिजा का दामन नहीं छोड़ा और फिर छोटी-छोटी तलवारे फिजाये कर्बला मे चमकी और दो छोटे-छोटे नेजे हवा मे लहराए, फिरिश्तों ने कहा, मरहबा !, हूरे बोली आफ़रीन है और रूहे फितरत छूम उठी ।

उमर बिन सअद देखते ही पुकारा के ये तो जानता हूँ के जैनब के बैठे और हुसैन के भांजे हो मगर खुदा मालूम भोली-भाली सुरते देख कर मुझे रहम आ गया है। आओ अब भी मेरी तरफ आ आजो तुम्हें पानी के मशकेजे भी मिल सकते है और दुनिया की हर नेमत भी मिल सकती है उमर बिन सअद की इस गुस्ताखी से ओने मुहम्मद तड़पे और जवाब दिया के ओ जालिम छूट न बक,

हम हर गिज बीबी जैनब के बेटे नहीं है और न ही हजरत इमाम हुसैन के भांजे है हम तो इमाम हुसैन के गुलाम है और हमारी माँ तो फातिमा की कनीज है और अली की खादिमा है और ए मलऊन ! जब तुझे नवासा ए रसूल और जिगर गोशीय बतूल पर रहम आया तो हम पर क्या रहम आएगा!

और हम तेरे पानी के मशकेजों के मुहताज नहीं है, हम तो होस कोशर के मालिक है और हमारी माँ ने हमे जिंदा वापिस आने के लिए नहीं भेजा है, हम तो अल्लाह की राह मे कुर्बान होने के लिए आये है, ये देख कफन हमारे सरो पर है और हमे पानी के मशकेजो और दुनिया की नेमतों का लालच दे कर बातिल की तरफ बुलाने वाले कमीने !

बातिल परस्ती छोड़ कर और यजीद को गैर इस्लामी हुकूमत के जाल से निकल कर तू हमारी तरफ आ जा तो हम तेरी शिफ़ाअत करेंगे, तुझे जन्नत देंगे और आबे कोसर के जाम पिलाएंगे और फिर ऑनो मुहम्मद के नारों से जमीन ए कर्बला हिल गई। ऑनो दाई जानिब से और मुहम्मद ने बाये जानिब से हमला किया ।

छोटी-छोटी तलवारे लश्कर यजीद पर चमक चमकी और हल्के फुल्के नेजे हवा मे लहराए और 9-10 साल के बच्चों ने मैदान ए जंग का नक्शा बदल दिया, जिधर को मुह करते दुश्मन दुश्मन गाजर-मुली की तरह कट-कट कर गिरते, किसी का सर नहीं और किसी का बाजू नहीं, किसी की लाश तड़पती है और कोई भाग रहा है।

और एसा करते भी क्यों न नवासे रसूल के थे और भांजे हुसैन के थे, दूध जैनब का था और खून अली का था। उमर बिन सअद ने ऑनो मुहम्मद के इस अंदाज को देखा तो पुकार उठा के ओ साथियों अगर चे ये 9-10 साल के बच्चे है लेकिन इनकी रगों मे भी शैर ए खुदा का खून है और अगर तुम इनको इस तरह कत्ल नहीं कर सकते,

तो सब मिल कर हमला करदो, ये क्या बुजदिली है के दीन दिन के भूको और प्यासों को भी तुम अभी तक खत्म नहीं कर सके, इस बद बख्त की अभी ये गुफ्तगू खत्म नहीं हुई के खुद ही दोनों लश्कर मे चले गए और दुश्मनों को रॉनदते हए उमर बिन सअद के सर पर पहुँच गए,

और तलवारों की बोछारो ने जखमी कर दिया, छोटे के सीने पर तीर लगा, वो बेहोश हो गए और गिर गए, बड़ा उसके सीने से तीर निकालने के लिए झुका तो दुश्मन ने तलवार मारी और दोनों भाई इखट्टे तड़पने लगे, उमर बिन सअद ने आवाज दी हुसैन ! अपने भाँजो को लाशे भी ले जाओ !

बीबी जैनब ने आवाज सुनी तो सजदे मे गिर गई और बारगाहे इलाही मे अर्ज की या इलाही तेरा शुक्र है के तूने मेरे बच्चों की कुर्बानी कबूल करली, इधर बीबी जैनब ने सजदे से सर उठाया और उधर इमाम हुसैन ऑनो मुहम्मद की लाशों को बहिन की झोली मे डाल दिया और फरमाया !

जैनब तेरे बच्चे कुर्बान हो गए ! हजरते जैनब ने बच्चों की लाशों को देखा, खून मे तर बतर थी, सुनहरी जुल्फों पर खून था, और चेहरों पर मिट्टी जम चुकी थी, अपनी चादर से मिट्टी झाडी, फिर आसमान की तरफ निगाह उठाई और कहा ए खालिक ए कायनात! ये है मेरी कमाई जो तेरी राह मे लुटादी ये है मेरा सहारा जो तेरे दीन की खातिर छिन गया,

मेरी दोलत जो तेरे महबूब की शरीयत पर फिदा कर दि, ए रब्बे दो जहा ! के जिन को मई अपनी आगोश मे लेकर कुरान की लोरिया सुनाया करती थी और जिन को अपनी गोद मे ले कर दुनिया की हर नेमत को भूल जाया करती थी, आज उनकी लाशे मेरी झोली मे है, आज इनके खून से मेरी आगोश रंगीन हो गई है,

आज इनके लहू से मेरा दामन सुर्ख हो गया है, ए अल्लाह पाक! मेने अपनी उम्र भर की कमाई तेरी राह मे लुटा दि है, अपना चैन तेरे दीन की आन पर कुर्बान कर दिया और मै ने नाना मुस्तफा अलैहिस सलाम की शरीयत पर अपने बच्चों को निसार कर दिया है, अब मेरी फर्याद सुन, इल्तिजा कबूल कर और मेरी दरखास्त मंजूर फरमा के मेरे इन बच्चों के खून का सदका कयामत के दिन मेरे नाना की गुन्हागर उम्मत को बख्श देना !!

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