बहिन जैनब की बेबाकी और बेटी सकीना पर सितम

बीबी शहर बानो और सेयदा जैनब सुबह से रो-रो कर थक चुकी थी और आँसू खुश्क हो चुके थे और आंखे पथरा गई थी, मगर वो कियामत खैज मंजर देख रही थी इस बार नजरे उठाई तो इमाम हुसैन का सर नेजे पर था, दोनों की दर्द भरी हल्की आवाज चीखो के साथ बुलंद हो गई और बेहोश हो गई, होश आया तो फिर देखा तो इमाम आली मकाम की लाश पर घोड़े दौड़ रहे थे, बहिन जैनब से बर्दाश्त नहीं हुआ और आवाज दी,

ओ उम्र बिन सअद ! अगर हमारा सब कुछ लूट लेने के बाद भी तेरी अदावत की आग नहीं भुजी तो जरा अपने लश्कर को पीछे हटा दे ताकि मै अपने भाई हुसैन की लाश को अपनी झोली मे उठालू और फिर अपने घोड़े दोडा दे शहीद भाई के साथ इस बहिन को भी कुचल दे, इमाम हुसैन का वफ़ादार घौडा मैदान ए कर्बला मे इधर-उधर दौड़ रहा था और जमीन पर अपना सर मारता था के सयेदा जैनब के पास किस मुह से जाऊ,

और जब वो मेरी पीठ पर अपने भाई हुसैन को न देखेगी तो उसका क्या हाल होगा, आखिर को इमाम हुसैन के खून मे अपने मुह को डुबो कर जमीन पर पतख्ता हुआ खैमो मे गया और घोड़े ने पाक बीबी के कदमों पर सर झुका दिया और जुबान ए हाल से जवाब दिया के, ए पाक सयेदा ! मेरे भी जिस्म पर सैकड़ों तीरों और नेजो के जख्म देखो,

इस से बड़ कर और कियामत क्या होगी के यजीदी लश्कर ने अहले बैथ के खैमो को आग लगा रहा था और नामुस ए रिसालत के सरो से चादर छीन रहा था, एक खैमा जलता देख कर नबी की नवासिया दूसरे खैमे मे चली जाती, दूसरा भी जल जाता तो तीसरे मै दौड़ जाती, इमाम हुसैन की बेटी सकीना( 5-8 साल की) बेटी कभी शहर बानो के दामन मे लिपट कर मुहम्मद की दुहाई देती, और कभी फूफी जैनब के गले लग कर रोती,

ये बच्ची कभी खैमो की दरिया ऊपर लेकर अपने जिस्म को छुपाती तो कभी किसी जली हुई कनात के टुकड़े से अपने सर को ढाँपती, फिजा जो इमाम हुसैन की कनीज थी उसने अपनी गुलामी का हक इस तरह अदा किया के अपनी चादर फाड़ कर आधी शहर बानो के सर पर दे दी और आधी सयेदा जैनब के ऊपर उड़ा दी, हजरते जैनब ने कहा फिजा ! अपने परदे का भी ख्याल रखो, तो अर्ज की सयेदा ! मै तो कनीज हूँ ।

इस कियामत जैसी घड़ी मे शिमर लईन ने आवाज दी के हुसैन इब्ने अली की बहिन मेरे सामने आये, तो जले हुए खैमो के एक कोने से किसी ने ललकारा, ओ लईन ! खबरदार ! अली की गैरब अभी जिंदा है, ये बीमार आबिद की आवाज थी, जिन्होंने तलवार ले कर खड़े होने की कोशिश की मगर उठा न सके, शिमर ने इरादा किया के आबिद को भी कत्ल करके दुनिया से सादात का हमेशा के लिए खातिमा कर दिया जाए और नसले हुसैन का नाम और निसान तक मिटा दिया जाए,

इतने मे परदे से एक और आवाज आई के खबर दार ! अगर किसी ने आबिद की तरफ आँख उठा कर भी देखा तो अभी कयामत बरपा कर दी जाएगी, ये सयेदा जैनब की आवाज थी जिसने और उम्र बिन सअद के दिल को दहलाया और उसने शिमर को ये कह कर रोक दिया के इसका फैसला यजीद पर छोड़ दिया जाए । किरवह बिन कैश, रावी है के मैदान ए कर्बला के रास्ते कूफे जा रहा था, जब कर्बला मे पहुंचा तो मैने देखा के,

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इमाम हुसैन की बेटी सकीना के कानों से बालिया खीची गई !

खैमे जल रहे है और चंद एक पर्दा दार औरते मुहम्मद की दुहाई देटी हुई इधर-उधर दोड़ रही है, और कोई छिपने की जगह तलाश कर रही है और मेने देखा के एक शख्स दोड़ता हुआ आया और उसने एक बच्ची के कानों से बालिया खीच ली जिससे उस बच्ची के कान भई चिर गए, ये बच्ची इमाम हुसैन की बेटी सकीना थी और फिर मेने देखा के एक औरत जलते हुए खैमे मे जाती है और आग के शोले के अंदर चली गई और जब वो बाहर आई तो उसके,

कंधों पर कोई सवार था, ये बिनते अली सयेदा जैनब थी जो बीमार आबिद (हजरतए जैनुल आबिदीन) को जलते हुए खैमे से अपने कंधों पर उठा कर बाहर लाई थी, किरवह बिन कैश आगे कहता है के एक दर्द नायक मंजर भी देखा के एक लड़की के कपड़ों मे आग लगी हुई है और वो चीखती चिल्लाती इधर-उधर फिरती है, मै दोड़ कर उस लड़की के पास गया और कहा, बीबी ! ठहर जाओ, तुम्हारी आग बुझा दूँ,

तो उस लड़की ने मुझे डांट कर कहा के खबरदार ! मेरे कपड़ों को हाथ न लगाना, क्या तो जानता नहीं के मै इमाम हुसैन की बेटी सकीना हूँ, उस लड़की की आवाज से सारी बात समझ गया और हाथ बांध कर अर्ज की के, ओ सयेद जादी ! मै भी तुम्हारे बाप हज़रत इमाम हुसैन का गुलाम हूँ, तो मैने उसके कपड़ों की आग बुझाई, किरवह बिन कैश कहता है के, मैने एक औरत और देखि

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सयेदा जैनब बनी अमीर, इमाम हुसैन के काफिले की !

जिसने जले हुए खैमे का एक टुकड़ा फटा हुआ अपने ऊपर ले रखा था और ये फरयाद कर रही थी के, या रसूल ए खुदा आप पर आसमान के फिरिश्तों का दुरूद और सलाम, ये देखो हुसैन रेगिस्तान मे पड़े हुए है, खाक और खून से आलूदा है, तमाम बदन टुकड़े-टुकड़े है, आपकी बेटियाँ कैदी है, आपकी औलाद मकतूल है और हवा उन पर खाक डाल रही है, रावी कहता है के उस औरत की गिरियों-जारी से अपने तो अपने बल्कि दुश्मन भी रोने लगे, सूरज भी अहले बैथ की इस हालत को देख कर रोता हुआ गुरूब हो गया

और उसकी किरने शहीदों पर आँसू बहाती हुई ऑनझल हो चुकी थी, यजीद का लश्कर इमाम हुसैन के सर को नेजे पर लटका कर और कहका लगाकर( यानि के बुलंद आवाज से हस कर) सो चुका था । खामोशी ही खामोशी थी के इमाम हुसैन की बहिन हजरतए जैनब उठी, लाशों के टुकड़ों को इखट्टा किया, शमशीर ए हैदरी हाथ मे पकड़ी और पहरा देने लगी, भाई हुसैन की लाश को झोली मे उठाया, अपने सर से चादरे ततहीर उतारी और लाश पर से मिट्टी झाड़ी, गिरदों गुबार साफ किया, आंधी रात हो गई तो बिनते अली ने देखा के,

एक घोड़े सुवार लाशों के चक्कर लगा रहा है, हजरते जैनब से हैरान होकर पूछा तु कौन है ?, और लाशों के गिर्द चक्कर क्यों लगा रहा है ? घोड़े सुवार ने पूछा ए बीबी ! ये लाश किसकी है, हजरते जैनब से जवाब दिया के ये अली अकबर की लाश है और ये अली असगर की लाश है, घोड़े सुवार ने फिर पूछा, ए बीबी ! ये छोटी-छोटी लाशे किसकी है ?, हजरते जैनब की आँखों से आँसू जारी हो गए और फरमाया ये छोटी-छोटी लाशे मेरे दो बच्चे ऑनो-मुहम्मद की है ।

हजरते जैनब का जवाब सुनकर वो सुवार जाने लगा तो हजरतए जैनब ने उस के घोड़े की लगाम पकड़ ली और पूछा, ए सुवार तु भी बता के तु कौन है ? कहा से आया है ? और क्यों आया है ? तो अब वो घोड़े सुवार ने अपने चहरे से नकाब उठाया और वो और कोई नहीं बल्कि तमाम नबियों के सरदार, बे कसो के कस, बे बसों के बस, गरीबों के सहारा, बे चाराओ के चारा, इमामुल अंबिया, दोनों जहानों के मालिक और मुख्तार, आमिना के लाल, मदीने के ताजदार, हबीब ए खुदा रहमतल लिल आलअमीन हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ थे ।

सुना है आप हर आशिक के घर तशरीफ़ लाते है !

कभी मेरे घर भी हो जाये, चिरागा या रसूल ए खुदा !!”

आखिर रात कट गई और कैसे कटी, ये जैनब के दिल से पूछो या शहर बानो की आँखों से, या आबिद के जिगर से पूछो या सकीना के सीने से, नहीं-नहीं ये दोश ए मुस्तफा से पूछो या आगोश ए फातिमा से और ये निगाहे ए अली से पूछो या रूह ए फितरत से । सुबह हुई तो कूफे के इस रेगिस्तान मे आबिद की सदाये तौहीद ओ रिसालत गूंज उठी और बीमार सयेद ने मैदान ए कर्बला मे दुनिया को ये बता दिया के आले मुसफ़ता पर पानी बंद करके उनको तड़पाया तो जा सकता है,

उनके बच्चों को कत्ल तो किया जा सकता है और उनके खैमो को जलाया जा सकता है लेकिन खानदान ए सादात से तौहीद और रिसालत की सदा ए हक को मिटाया नहीं जा सकता और त कयामत हमारे खानदान ए सादात से हक की आवाजे आती रहेंगी ।

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