किसी ने लिखा है के, ” जिंदगी की दौड़ मे कुछ यू पीछे छूट गया, बचपन का मुस्कुराना, गली का खेल छूट गया। ” इसका अगर खुलासा ए कलाम किया जाए तो कुछ यूं होगा, इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, वेसे वेसे ही उसकी जिम्मेदारियो का बोझ उसके कंधों पर चढ़ता जाता है,
चाहे स्कूल हो या मदरसे से निकलते ही करियर की दौड़, नौकरी की चिंता और फिर फेमिली की जिम्मेदारिया- इन सबके बीच बचपन कब पीछे छूट जाता है ये हमे खुद पता ही नहीं चलता, वो बचपन मे खेल-खिलौने, बारिश मे भीगना, पतंग उड़ाना और बिना दोस्त के खेलने नहीं जाना। ये सब अब किसी कोने मे छिप सा गया है ।
आज हम जब अपने बचपन की फ़ोटोज़ देखते है तो एक सुकून भरी उदासी दिल को छू जाती है मन कहता है — फिर से वही दिन लौट आये, जब जिंदगी आसान थी और खुशिया सस्ती थी लेकिन हकीकत ये है के वो वक्त अब कभी लौटने वाला नहीं है बस यादे ही साथ रह जाती है ।
मेरे अजीजों इस शेर मे यही एहसास छुपा है के हम जितनी तेजी से आगे बढ़ते है, उतना ही कुछ पीछे छोड़ते जाते है, इसलिए जरूरी है के आज के लम्हों को भी पूरी तरह जिया जाए ताकि कल जब हम पलटकर देखे तो अफसोस नहीं बल्कि मुस्कान हो ।
इस वक्त मे अच्छे और खेर वाले काम करे जैसे एक दूसरे का अदब करना नमाजों की पाबंदी करना, मा-बाप और घर वालों से मुहब्बत के साथ बर्ताव करना, दुनिया और दीन दोनों की भलाइया जिन कामों से नसीब हो वो ही काम करे ।