कहते है के, ” वक्त के साथ सब कुछ बदल गया मगर, बचपन की गलियो का नक्शा आज भी दिल मे है.. ” वक्त जैसे-जैसे गुजरता गया, जिंदगी की जिम्मेदारियों का बोझ कंधों पर चढता गया, खेल के मैदान अब ऑफिस की फ़ाइलों मे खो गए या कहे के परेशानियों ने उनकी जगह ले ली।
और वो हाथ जो कभी मिट्टी मे सने रहते थे वो अब मोबाईल और रोजमर्रा की उलझनों मे उलझ गए लेकिन दिल के किसी कोनए मे आज भी वो गलिया जिंदा है – जहा न कोई डर था, न कोई दिखावा ।
वो छोटी-छोटी खुशिया, वो छुप-छुप कर आम तोड़ना, वो साइकिल पर बैठकर पूरे मोहल्ले का चक्कर लगाना, आज भी दिल को सुकून देता है, आज जिंदगी मे कुछ है और कुछ नहीं है लेकिन वो सुकून नहीं जो उन गलियों मे था।
ना अब वो यार है, ना वो मासूम सी लड़ाइया, बस कुछ धुंधली-धुंधली तस्वीरे और दिल मे महफूज यादे है, जो कभी-कभी अकेले मे आँखों को नम कर जाती है।
कभी वक्त मिले तो उन गलियों मे लौट चलिए, शायद वहा आज भी बचपन हमारा इंतेजार कर रहा हो.. और आपको दिखावे भरे चहरे नहीं मिलेंगे वहा एक दोस्त के लिए दूसरे दोस्त को खेल छोड़ना मिलेगा, वहा लड़ाइया भी मिलेंगी लेकिन वहा खुशिया भी मिलेंगी वहा आपको अपना पान मिलेगा ।