यजीद के दरबार मे अहले सादात का काफिला

यजीद का इमाम हुसैन के बेटे हजरतए आबिद से सवाल-जवाब

इब्ने जियाद के हुक्म से कैदियों की रस्सीया और कस दी गई और अहले सादात का ये काफिला दुश्मन की तरफ रवाना हो गया, उनके हाथ उलटे बंधे हुये थे, रस्सीयो से बदन जकड़े हुए थे, ऊंटों की नंगी पुश्तो पर सुवार थे, इमाम हुसैन का सर नेजे पर लटका हुआ था और उनका वारिस आज खुदा के सिवा और कोई नहीं थी,

दुनिया वालों देखो ! दर्दे दिल की नज़रों से देखो ! अश्कबार आँखों से देखो और देखो के मुल्क ए शाम और इराक के रेगिस्तानों मे ये किसका काफिला है, ये कौन है जिनके हाथ रस्सियों से उलटे बांधे हुए है ? ये कौन है जो ऊंटों की नंगी पुश्तो पर सवार है ! ये कौन है जिनके पाओ मै बैडिया है ! ये कौन है जिनके सरो पर कोई कपड़ा नहीं !

मेरे अजीजों शान ए कायनात पर अपनी रहमत और बरकत की चादर देने वाले आज बे पर्दा है, खुदा की शान बे नियाजी ! सादात कर्बला से आये बनकर कैदियों का काफिला बड़े ही सब्र और शुक्र के साथ मुसीबत मे भी जिक्र ए इलाही करता हुआ चला जा रहा था । रास्ते मे जनाबे आबिद को ख्याल आया के बहुत दिन हुए बाप के साया ए आतिफट से महरूम हुए ।

इरादा किया के बाप के सर को सलाम करू, मगर ये देख कर के हाथों मे हथकड़िया है और यजीद अपने शहनशाही दरबार मे एक सुनहरे तख्त पर कैसरो किसरा जैसी शान और शौकत के साथ बैठा हुआ था और इर्द गिर्द पहरा दार हाथों मे नेजे लिए खड़े थे जिखर बिन कैश दरबार मे हाजिर हुआ, यजीद ने पूछा, क्यों क्या खबर लाए हो ? इब्ने कैश ने जवाब दिया, फतह और नुसरत की खुश खबरी लाया हूँ और खानदान ए सादात के कैदी और इब्ने अली का सर भी लाया हूँ,

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यजीद ये सुनकर बहुत खुश हुआ और फिर वो महशर खैज ए वक्त भी आ गया के अहले सादात के कैदियों का काफिला भी दमिश्क मे आ पहुंचा और फिर सयेदा और खानदान ए सादात रस्सियों मे जकड़ी हुई और सहमी हुई यजीद के दरबाद मे खड़ी थी और फातिमा के लाल का सर मुबारक एक सोने की थाल मे यजीद के सामने था, यजीद ने हजरतए जैनुल आबिदीन से कहा के तेरे बाप हुसैन का इरादा था के मेरी हुकूमत का तख्त उलट करके खुद हुकूमत करे,

मगर खुदा ने उसको हलाक कर दिया अगर तेरा बाप भी मेरी बैत कर लेता तो आज जिस तरह मेरे नक्कारे ब्याज रहे है उसके भी शादियाने बजते और न वो कत्ल होता न उसके बच्चे कत्ल होते और न ही कैदी बनते फिर हजरतए आबिद बोले के खामोश ! हा ! मेरे बाप ने तेरी गैर इस्लामी हुकूमत और तेरे फिसक के खिलाफ जिहाद करके तेरे ही हाथों मरी हुई खिलाफत ए इस्लामिया और रूह ए जमूरियत को फिर जिंदा करने की कोशिश की,

और फिर वो अपनी कोशिश मे कामियाब हो गए और मेरे बाप मरे नही बल्कि अल्लाह की राह मे अपना सर कटा कर हमेशा के लिए जिंदा हो गए, आबिद ने इतना कहा तो इमाम हुसैन के सर ने कुरान पाक की एक आयत की तिलावत करी और फिर जनाबे आबिद ने जोश मे फरमाया के ये देख ! मेरे बाप के जिंदा होने का सबूत और मेरे बाप तेरे जेसे फासिक और फाजिर और शरीयत के बागी की बैत न करके आइंदा आने वाली नस्लों को ये सबक दे गए ।

अभी आप बयान ही कर रहे थे के दमिश्क की जामा मस्जिद से जोहर की आजान की आवाज आई, जनाबे आबिद और जोश मे आये और बुलंद आवाज से फरमाया, ए खुदा और रसूल के बागी यजीद ! अजान मेरे नाना पाक का नाम है या तेरे बाप का !, यजीद खामोश हो गया, और हुसैन के शैर ने फरमाया के तेरी फतह और नुसरत का नंगारे बज कर खत्म हो जाएंगे मगर मेरे नाना मुस्तफा करीम की अलैहिस सलाम की अजान कयामत तक चलती रहेगी,

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यजीद का हजरतए जैनब से सवाल-जवाब

अब यजीद जनाबे की तरफ से मुह मोड कर हजरतए जैनब से पूछता तु कौन है ? , सयेदा ने बड़ी मतानत से जवाब दिया के बिनते अली हूँ और मेरे नाना तेरे नाना से अफजल थे और मै वो हूँ के जिसके सर से एक दफा चादर सरक गई तो खुदा ने सूरज को छुपा दिया था मगर आज वही जैनब तेरे दरबार मे बे हिजाब खड़ी है, यजीद ! तेरे जुल्म की इंतिहा हो चुकी है के तेरी मा, नहीं और बेतिया तो परदे मे हो और मुहम्मद ए मुस्तफा अलैहिस सलाम की नवासी, फातिमा की लख्ते जिगर तेरे गुलामों के सामने रस्सियों मे जकड़ी हुई बे पर्दा खड़ी हो,

और तूने दुनिया की जिस आर्जी हुकूमत के लिए अहले बैथ को अपने जुल्म और सितम का निशाना बनाया है, वो हुकूमत मिट जाएगी और मेरे भाई हुसैन का दीन जल्द रंग लाएगा और ये तेरा ख्याल गलत है के मेरे भाई हुसैन का नाम मिट गया नहीं बल्कि मेरे भाई हुसैन का नाम कयामत तक जिंदा रहेगा, यजीद खामोश रहा और हुक्म दिया की रससिया कजोल कर इनको कैद खाने की अंधेरी कोठरी मे बंद कर दिया जाए ।

बेटी सकीना ने अब्बा हुसैन की याद मे दम तोड़ दिया !

इमाम हुसैन की बेटी सकीना रो-रो कर थक चुकी थी आँसू खुश्क हो चुके थे और अब कैद खाने की कोठरी मे उसकी हालत और भी नाजुक और काबिल ए रहम थी, वो फूफी जैनब के पास जाती तो चैन न आता, वो अम्मा शहर बानो के करीब होती तो सुकून न मिलता, वो कैद खाने के दरवाजे पर खड़ी होकर देखती के शायद मेरे बाप कही से आ जाए, मेरा भाई अकबर कही से निकल आये, मेरे असगर की नन्नी सी सूरत कही से जाहीर हो जाए,

वो एक दिन कैद खाने के दरवाजे पर बैठी गिरया-जारी कर रही थी के एक सुवार पास से गुजरा, हजरतए सकीना ने आवाज दी, ए जाने वाले खुदा के लिए मेरी बात सुन जाना, वो सुवार करीब आया, अर्ज की क्या कहती हो बच्ची ? हजरतए सकीना ने पूछा कहा जा रहे हो, सुवार ने जवाब दिया के मदीने का मुसाफिर हूँ और कर्बला के रास्ते मदीने जा रहा हूँ, मदीने का नाम सुना तो चिल्ला पड़ी, कर्बला का नाम सुना तो तड़प उठी, सुवार ने पूछा बेटी तु कौन है ?

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और तेरा नाम क्या है ?, फरमाया ! मै इमाम हुसैन की बेटी सकीना हूँ, तुम कर्बला जा रहे हो, वहा मेरे अब्बा हुसैन की लाश है, उस लाश को कुलावे मे लेकर मेरा सलाम अर्ज करना और कहना, या इमाम ! आप की बेटी सकीना मुल्क ए शाम के कैद खाने के दरवाजे पर नंगे सर बैठी आपकी राह देख रही है, आपका इंतेजार कर रही है, सुवार को पैगाम देने के बाद हजरते सकीना बेहोश हो गई, सयेदा जैनब ने इमाम हुसैन का सर उठाया और कोठरी मे ले गई,

रात आधी गुजर चुकी थी, हर तरफ खामोशी थी, सब दुनिया सो चुकी थी के कैद खाने मे जब बच्ची सकीना ने आंखे खोली तो भाई आबिद को देखा, मा और फूफी को भी देखा और इमाम हुसैन का सर देख कर अब्बा हुसैन ! अब्बा हुसैन पुकारती हुई इस दुनिया ए फ़ानी से रुखसत हो गई ।

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